आगरा का किला :
आगरा का किला एक यूनेस्को घोषित विश्व धरोहर स्थल है, जो कि भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में स्थित है। इसे लाल किला भी कहा जाता है। इसके लगभग 2.5 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में ही, विश्व प्रसिद्ध स्मारक ताज महल स्थित है। इस किले को चहारदीवारी से घिरी प्रासाद (महल) नगरी कहना बेहतर होगा।
यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण किला है। भारत के मुगल सम्राट बाबर, हुमायुं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां व औरंगज़ेब यहां रहा करते थे, व यहीं से पूरे भारत पर शासन किया करते थे। यहां राज्य का सर्वाधिक खजाना, सम्पत्ति व टकसाल थी। यहां विदेशी राजदूत, यात्री व उच्च पदस्थ लोगों का आना जाना लगा रहता था, जिन्होंने भारत के इतिहास को रचा।
यह एक ईंटों का किला था, जो चौहान वंश के राजपूतों के पास था। इसका प्रथम विवरण 1080 ई. में आता है, जब महमूद गजनवी की सेना ने इस पर कब्ज़ा किया था। सिकंदर लोदी (1487-1517), दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था, जिसने आगरा की यात्रा की, व इस किले में रहा था। उसने देश पर यहां से शासन किया, व आगरा को देश की द्वितीय राजधानी बनाया। उसकी मृत्यु भी, इसी किले में 1517 में हुई थी, जिसके बाद, उसके पुत्र इब्राहिम लोदी ने गद्दी नौ वर्षों तक संभाली, तब तक, जब वो पानीपत के प्रथम युद्ध (1526) में काम नहीं आ गया। उसने अपने काल में, यहां कई स्थान, मस्जिदें व कुएं बनवाये।
पानीपत के बाद, मुगलों ने इस किले पर भी कब्ज़ा कर लिया, साथ ही इसकी अगाध सम्पत्ति पर भी। इस सम्पत्ति में ही एक हीरा भी था, जो कि बाद मेंकोहिनूर हीरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तब इस किले में इब्राहिम के स्थान पर बाबर आया। उसने यहां एक बावली बनवायी। सन 1530 में, यहीं हुमायुं का राजतिलक भी हुआ। हुमायुं इसी वर्ष बिलग्राम में शेरशाह सूरी से हार गया, व किले पर उसका कब्ज़ा हो गया। इस किले पर अफगानों का कब्ज़ा पांच वर्षों तक रहा, जिन्हें अन्ततः मुगलों ने 1556 में पानीपत का द्वितीय युद्ध में हरा दिया।
इस की केन्द्रीय स्थिति को देखते हुए, अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाना निश्चित किया, व सन 1558 में यहां आया। उसके इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है, कि यह किला एक ईंटों का किला था, जिसका नाम बादलगढ़ था। यह तब खस्ता हालत में था, व अकबर को इसि दोबारा बनवाना पड़ा, जो कि उसने लाल बलुआ पत्थर से निर्मण करवाया। इसकी नींव बड़े वास्तुकारों ने रखी। इसे अंदर से ईंटों से बनवाया गया, व बाहरी आवरण हेतु लाल बलुआ पत्तह्र लगवाया गया। इसके निर्माण में चौदह लाख चवालीस हजार कारीगर व मजदूरों ने आठ वर्षों तक मेहनत की, तब सन 1573 में यह बन कर तैयार हुआ।
अकबर के पौत्र शाहजहां ने इस स्थल को वर्तमान रूप में पहुंचाया। यह भी मिथक हैं, कि शाहजहां ने जब अपनी प्रिय पत्नी के लिये ताजमहल बनवाया, वह प्रयासरत था, कि इमारतें श्वेत संगमर्मर की बनें, जिनमें सोने व कीमती रत्न जड़े हुए हों। उसने किले के निर्माण के समय, कई पुरानी इमारतों व भवनों को तुड़वा भी दिया, जिससे कि किले में उसकी बनवायी इमारतें हों।
अकबर के पौत्र शाहजहां ने इस स्थल को वर्तमान रूप में पहुंचाया। यह भी मिथक हैं, कि शाहजहां ने जब अपनी प्रिय पत्नी के लिये ताजमहल बनवाया, वह प्रयासरत था, कि इमारतें श्वेत संगमर्मर की बनें, जिनमें सोने व कीमती रत्न जड़े हुए हों। उसने किले के निर्माण के समय, कई पुरानी इमारतों व भवनों को तुड़वा भी दिया, जिससे कि किले में उसकी बनवायी इमारतें हों।
यह किला १८५७ (1857) का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय युद्ध स्थली भि बना। जिसके बाद भारत से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य समाप्त हुआ, व एक लगभग शताब्दी तक ब्रिटेन का सीधे शासन चला। जिसके बाद सीधे स्वतंत्रता ही मिली।
इस किले का एक अर्ध-वृत्ताकार नक्शा है, जिसकी सीधी ओर यमुना नदी के समानांतर है। इसकी चहारदीवारी सत्तर फीट ऊंची हैं। इसमें दोहरे परकोटे हैं, जिनके बीछ बीच में भारी बुर्ज बराबर अंतराल पर हैं, जिनके साथ साथ ही तोपों के झरोखे, व रक्षा चौकियां भी बनी हैं। इसके चार कोनों पर चार द्वार हैं, जिनमें से एक खिजड़ी द्वार, नदी की ओर खुलता है।
इसके दो द्वारों को दिल्ली गेट एवं लाहौर गेट कहते हैं (लाहौर गेट को अमरसिंह द्वार भी कहा जाता है)।
शहर की ओर का दिल्ली द्वार, चारों में से भव्यतम है। इसके अंदर एक और द्वार है, जिसे हाथी पोल कहते हैं, जिसके दोनों ओर, दो वास्तवाकार पाषाण हाथी की मूर्तियां हैं, जिनके स्वार रक्षक भी खड़े हैं। एक द्वार से खुलने वाला पुर, जो खाई पर बना है, व एक चोर दरवाजा, इसे अजेय बनाते हैं।
स्मारक स्वरूप दिल्ली गेट, सम्राट का औपचारिक द्वार था, जिसे भारतीय सेना द्वारा (पैराशूट ब्रिगेड) हेतु किले के उत्तरी भाग के लिये छावनी रूप में प्रयोग किया जा रहा है। अतः दिल्ली द्वार जन साधारण हेतु खुला नहीं है। पर्यटक लाहौर द्वार से प्रवेश ले सकते हैं, जिसे कि लाहौर की ओर (अब पाकिस्तान में) मुख होने के कारण ऐसा नाम दिया गया है।
स्थापत्य इतिहास की दृष्टि से, यह स्थल अति महत्वपूर्ण है। अबुल फज़ल लिखता है, कि यहां लगभग पाँच सौ सुंदर इमारतें, बंगाली व गुजराती शैली में बनी थीं। कइयों को श्वेत संगमर्मर प्रासाद बनवाने हेतु ध्वस्त किया गया। अधिकांश को ब्रिटिश ने 1803 से 1862 के बीच, बैरेक बनवाने हेतु तुड़वा दिया। वर्तमान में दक्षिण-पूर्वी ओर, मुश्किल से तीस इमारतें शेष हैं। इनमें से दिल्ली गेट, अकबर गेट व एक महल-बंगाली महल – अकबर की प्रतिनिधि इमारतें हैं।
अकबर गेट अकबर दरवाज़ा को जहांगीर ने नाम बदल कर अमर सिंह द्वार कर दिया था। यह द्वार, दिल्ली-द्वार से मेल खाता हुआ है। दोनों ही लाल बलुआ पत्थर के बने हैं।
बंगाली महल भी लाल बलुआ पत्थर का बना है, व अब दो भागों -- अकबरी महल व जहांगीरी महल में बंटा हुआ है।
यहां कई हिन्दू व इस्लामी स्थापत्यकला के मिश्रण देखने को मिलते हैं। बल्कि कई इस्लामी अलंकरणों में तो इस्लाम में हराम (वर्जित) नमूने भी मिलते हैं, जैसे—अज़दहे, हाथी व पक्षी, जहां आमतौर पर इस्लामी अलंकरणों में ज्यामितीय नमूने, लिखाइयां, आयतें आदि ही फलकों की सजावट में दिखाई देतीं हैं।
Timings: Open Time : 6 A.M. to 6.00 P.M. (all day open)
आगरा का किला प्रवेश शुल्क
आगरा का किला के लिए प्रवेश शुल्क भारतीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए अलग कर रहे हैं.
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