25 February 2015

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गुलमर्ग : सुंदरता के कारण इसे धरती का स्‍वर्ग भी कहा जाता है ।

गुलमर्ग कश्‍मीर का एक खूबसूरत हिल स्‍टेशन है। इसकी सुंदरता के कारण इसे धरती का स्‍वर्ग भी कहा जाता है।
भारत के प्रमुख पर्यटक स्‍थलों में से एक हैं। फूलों के प्रदेश के नाम से मशहूर यह स्‍थान बारामूला जिले में स्थित है। यहां के हरे भरे ढलान सैलानियों को अपनी ओर खींचते हैं। समुद्र तल से 2730 मी. की ऊंचाई पर बसे गुलमर्ग में सर्दी के मौसम के दौरान यहां बड़ी संख्‍या में पर्यटक आते हैं।
गुलमर्ग की स्‍थापना अंग्रेजों ने 1927 में अपने शासनकाल के दौरान की थी। गुलमर्ग का असली नाम गौरीमर्ग था जो यहां के चरवाहों ने इसे दिया था। 16वीं शताब्‍दी में सुल्‍तान युसुफ शाह ने इसका नाम गुलमर्ग रखा। आज यह सिर्फ पहाड़ों का शहर नहीं है, बल्कि यहां विश्‍व का सबसे बड़ा गोल्‍फ कोर्स और देश का प्रमुख स्‍कींग रिजॉर्ट है।
गोल्‍फ कोर्स :» गुलमर्ग के गोल्‍फ कोर्स विश्‍व के सबसे बड़े और हरे भरे गोल्‍फ कोर्स में से एक है। अंग्रेज यहां अपनी छुट्टियाँ बिताने आते थे। उन्‍होंने ही गोल्‍फ के शौकीनों के लिए 1904 में इन गोल्‍फ कोर्स की स्‍थापना की थी।
स्‍कींग रिजॉर्ट :» स्‍कींग में रुचि रखने वालों के लिए गुलमर्ग देश का नहीं बल्कि इसकी गिनती विश्‍व के सर्वोत्तम स्‍कींग रिजॉर्ट में की जाती है। दिसंबर में बर्फ गिरने के बाद यहां बड़ी संख्‍या में पर्यटक स्‍कींग करने आते हैं। यहां स्‍कींग करने के लिए ढ़लानों पर स्‍कींग करने का अनुभव होना चाहिए। जो लोग स्‍कींग सीखना शुरु कर रहे हैं, उनके लिए भी यह सही जगह है। यहां स्‍कींग की सभी सुविधाएं और अच्‍छे प्रशिक्षक भी मौजूद हैं। 
खिलनमर्ग :» खिलनमर्ग गुलमर्ग के आंचल में बसी एक खूबसूरत घाटी है। यहां के हरे मैदानों में जंगली फूलों का सौंदर्य देखते ही बनता है। खिलनमर्ग से बर्फ से ढ़के हिमालय और कश्‍मीर घाटी का अदभूत नजारा देखा जा सकता है।
अलपाथर झील :» अलपाथर झील गुलमर्ग से 13 कि.मी दूर है चीड़ और देवदार के पेड़ों से घिरी यह झील अफरवात चोटी के नीचे स्थित है। और यह गुलमर्ग का पर्यटक स्थल भी है। इस झील की खासियत यह है कि, जून तक इसमें बर्फ जमी रहती है और गर्मियों में इसका पानी बर्फ के टुकडो संग निंगली नल्लाह में बहने लगता है। इस झील के आस पास बर्फ से ढक्की पहाडियाँ इसे और भी आकर्षक बनती है। 
गोंडोला राईड :» गोंडोला राईड जो कि केबल कार है, गुलमर्ग का प्रमुख आकर्षक स्थल है। यह दो पांच कि.मी लम्बी राईड है, गुलमर्ग से कौंगडोर और कौंगडोर से अफरात। इस राईड में आप पूरे हिमालय पर्वत और गोंडोला गाँव को देख सकते हैं। कौंगडोर का गोंडोला स्टेशन 3099 मीटर और अफरात 3979 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गोंडोला राईड भ्रमण के लिए बहुत ही बढिया साधन है। 
दृंग :» दृंग की खोज हाल ही में हुई है, गुलमर्ग का सबसे बढिया पिकनिक स्पॉट है। सैलानी यहाँ कि खूबसूरती के साथ - साथ मछली पकड़ने का भी लुफ्त उठा सकते हैं। लिंमर्ग, गुलमर्ग का एक और पर्यटक स्थल है, जो अपनी प्राकृतिक सौन्दर्यता के लिए प्रसिद्ध है। देवदार के पेडों और सुन्दर फूलों से ढक्का यह प्रदेश कैम्पिंग और पर्यटक के लिए उत्तम स्थल हैं।
निंगली नल्‍लाह :» गुलमर्ग से आठ किमी दूर स्थित निंगली नल्‍लाह एक धारा है जो अफरात चोटी से पिघली बर्फ और अलपाथर झील के पानी से बनी है। यह सफेद धारा घाटी में गिरती है और अंतत: झेलम नदी में मिलती है। घाटी के साथ बहती यह धारा गुलमर्ग का एक प्रसिद्ध पिकनिक स्‍पॉट है।
बाबा रेशी की जियारत/बाबा रेशी की दरगाह :» यह मुसलमानों का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। यह जियारत एक प्रसिद्ध मुस्लिम संत की याद में बनाई गई है जिनका इंतकाल 1480 में हुआ था। सन्‍यास लेने से पहले वे कश्‍मीर के राजा जिया-उल-अबिदीन के दरबारी थे। प्रतिवर्ष हजारों की संख्‍या में श्रद्धालु यहां आते हैं।
गुलमर्ग जाने का सबसे अच्छा समय
वैसे तो सैलानी साल के किसी भी मौसम में गुलमर्ग घूमने जा सकते हैं। पर गुलमर्ग की खूबसूरती देखने का सबसे बढिया समय मार्च और अक्टूबर के बीच है। 



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24 February 2015

भानगड किला : किले का अद्भुत रहस्य

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भानगड किला : किले का अद्भुत रहस्य

भानगड किला
जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है । भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था । इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था । राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे ।
उस समय भानगड़ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी । भानगढ़ अलवर जिले में स्थित एक शानदार किला है । जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है । चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्प कलाओ का प्रयोग किया गया है । इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदि के बेहतरीन और अति प्राचीन मंदिर विद्यमान हैं । इस किले में कुल पांच द्वार हैं । और साथ साथ एक मुख्य दीवार है । इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है । जो अति प्राचीन काल से अपने यथास्थिति में पड़े हुये हैं ।
भानगड किले पर काले जादूगर सिंघिया का शाप भानगड़ किला देखने में जितना शानदार है । उसका अतीत उतना ही भयानक है । आपको बता दें कि - भानगड़ किले के बारे में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भानगड़ की राजकुमारी रत्नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खूबसूरत थी । उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्य में थी । और  देश के कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्छुक थे । उस समय उनकी उमृ महज 18 वर्ष ही थी । और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था । उस समय कई राज्यों से उनके लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे । उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं।
राजकुमारी रत्नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची । और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी । उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम का व्यक्ति खड़ा होकर उन्हें बहुत ही गौर से देख रहा था । सिंघीया उसी राज्य में रहता था । और वो काले जादू का महारथी था । ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दीवाना था । और उनसे प्रगाण प्रेम करता था । वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था । इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र की बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी । उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया । जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था
ये राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया । लेकिन उसे वही पास के एक पत्थर पर पटक दिया । पत्थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया । और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया । इसके बाद से ही वो पत्थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा । और तांत्रिक को कुचल दिया । जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी । मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि - इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जायेंगे । और वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे । और ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी । उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगड और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ । जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये । यहाँ तक कि राजकुमारी रत्नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी । और उनकी भी मौत हो गयी । एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्ले आम के बाद वहाँ मौत की चीखें गूंज गयीं । और आज भी उस किले में उनकी रूहें घुमती हैं । 
किले में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध है । फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है । किले के चारों तरफ आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ( ए एस आई ) की टीम मौजूद रहती है । ए एस आई ने सख्त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके में किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है । इस किले में जो भी सूर्यास्त के बाद गया । वो कभी भी वापस नहीं आया है । कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है । और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है ।
किले में रूहों का कब्जा - इस किले में कत्ले आम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं । कई बार इस समस्या से रूबरू हुआ गया है । एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहाँ लगायी थी । ताकि इस बात की सच्चाई को जाना जा सके । लेकिन वो भी असफल रही । कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी । इस किले में आज भी जब आप अकेले होंगे । तो तलवारों की टंकार और लोगों की चीख को महसूस कर सकते हैं । इसके अलावा इस किले के भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चूडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती हैं । किले के पिछले हिस्से में जहाँ एक छोटा सा दरवाजा है । उस दरवाजे के पास बहुत ही अंधेरा रहता है । कई बार वहाँ किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है । वहीं किले में शाम के वक्त बहुत ही सन्नाटा रहता है । और अचानक ही किसी के चीखने की भयानक आवाज इस किले में गूँज जाती है

भानगड किले का प्रवेश शुल्क
भानगड किले के लिए प्रवेश शुल्क भारतीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए अलग कर रहे हैं.
विदेशी पर्यटकों: INR 200 « | » भारतीयों पर्यटकों INR 25 

» Timings: Open Time : 6 A.M. to 6 P.M.
भानगड किले की सैर करने के लिए सबसे अच्छा समय
» भानगड की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी तक शरद ऋतु, सर्दियों और वसंत के महीनों में है.

    










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04 February 2015

माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है।

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माउंट आबू :- माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। माउंट आबू को राजस्थान का स्‍वर्ग भी माना जाता है। माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। माउंट आबू के ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक ख़ूबसूरती पर्यटको को अपनी ओर खींचती है।
इनमें कुछ पर्यटन स्थल शहर से दूर हैं तो कुछ शहर के आसपास ही हैं। माउंट आबू दर्शन के लिए पर्यटन विभाग द्वारा निजी बस ऑपरेटरों द्वारा साइटसीन टूर चलाए जाते हैं। ये टूर आधे दिन के होते हैं। वैसे जीप या टैक्सी द्वारा भी आबू भ्रमण किया जा सकता है। राजस्थान पर्यटन का कार्यालय बस स्टैंड के सामने है। जहाँ से यहाँ की पूरी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। शहर के अंदर या पास के स्थान पैदल घूमते जा सकते हैं। कंडक्टेड टूर में हर स्थान पर सीमित समय ही दिया जाता है।
एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले भगवान गणेश का जन्म माउंटआबू में हुआ था और माता पार्वती ने अर्बुद पर्वत के इशान शिखर पर बैठकर पुत्र की कामना के लिए पुन्यंक नामक व्रत किया था। एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक स्कन्द पुराण के अर्बुद खंड के मुताबिक गौरी शिखर पर्वत पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गौरी शिखर यानि अर्बुद पर्वत और भगवान गणेश के जन्म स्थान पर बना मंदिर और उनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं।
माउंटआबू के अर्बुद पर्वत सहित अरावली पर्वत के सभी धर्म ग्रंथों में देवी देवताओं के निवास स्थान होने का उल्लेख है। स्कन्द पुराण के तीसरे अध्याय में अर्बुद खंड के अनुसार माउंटआबू के गौरी शिखर जिसे अब गुरु शिखर कहते हैं भगवान गणेश के जन्म होने के प्रमाण मिलते हैं।
यहां की साल भर रहने वाली हरियाली पर्यटकों को ख़ासी भाती है। इसका निर्माण झील के आसपास हुआ है और चारों ओर से यह पर्वतीय क्षेत्र जंगलों से घिरा है।



 

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